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शिक्षा समाचार

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अंग्रेजों ने इसी पेड़ पर दी थी 132 क्रांतिकारियों को फांसी

अंग्रेजों ने इसी पेड़ पर दी थी 132 क्रांतिकारियों को फांसी

अंग्रेजों ने इसी पेड़ पर दी थी 132 क्रांतिकारियों को फांसी


मेरठ. अंग्रेजों से देश को आजाद कराने की पहली चिंगारी साल 1857 में 10 मई को मेरठ से फूटी थी। उस समय अंग्रेजों ने अपनी क्रूरता दिखाते हुए विद्रोह करने वाले लोगों को सरेआम पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी थी। आज हम आपको ऐसे ही पेड़ों के बारे में बताने जा रह हैं, जिस पर अंग्रेजों ने सरेआम क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया था।

तहखाने से निकालकर दी गई थी 132 लोगों को फांसी

- गाजियाबाद जिले के मोदीनगर के पास एक गांव है सीकरी खुर्द गांव।

- अंग्रेजों से लड़ते हुए जब सीकरी खुर्द के क्रांतिकारी कमजोर पड़ने लगे तो वह गांव के बाहर बने महामाया देवी मंदिर में बने तहखाने में जा छुपे।

- इसके बाद अंग्रेज कलेक्टर डनलप यहां पहुंचा और गांव वालों को तहखाने से ढूंढ़कर बाहर निकाला।

- बताया जाता है कि क्रांतिकारियों को बाहर निकालने के बाद अंग्रेज कलेक्टर ने उन्हें मौत के घाट उतारने का फरमान सुना दिया।

- कलेक्टर के आदेश पर यहां मौजूद करीब 132 लोगों को मंदिर परिसर में लगे पेड़ पर फांसी पर लटका दिया।

- पेड़ पर जगह कम पड़ जाने पर अंग्रेजों ने 30 ग्रामीणों को गोली मारकर मौत के घाट उतारा था।

आज भी मौजूद है वट का पेड़

- अंग्रेजों की क्रूरता की कहानी बयां करने वाला यह वट का पेड़ आज भी मंदिर परिसर में है।

- हर साल नवरात्र पर मंदिर में मेले के दौरान आने वाले श्रद्धालु इस वट के पेड़ को जरूर नमन करते हैं।

- ग्रामीणों का कहना है कि उस समय अंग्रेज फौज को सीकरी गांव के क्रांतिकारियों ने र्इंट का जवाब पत्थर से दिया था।

- लेकिन उनकी फौज ज्‍यादा होने और क्रांतिकारियों के हथियार कम होने की वजह से वो कमजोर पड़ गए थे।

लगान का विरोध करने पर दी गई थी फांसी

- सीकरी खुर्द ही नहीं, सहारनपुर में भी विद्रोह की चिंगारी भड़कने पर अंग्रेजों ने खूब जुल्म ढहाए थे।

- ब्रिटिश शासकों ने यहां जब जबरन लगान वसूली की तो ग्रामीणों ने इसका विरोध किया।

- इससे गुस्साए अंग्रेजों ने कई लोगों को फांसी पर लटका दिया।

- कोतवाली के ठीक सामने पीपल के पेड़ पर विरोध करने वालों को फांसी दी गई थी।

- इसी पेड़ को प्रतीक मानकर 10 मई 1957 को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 100वीं जयंती पर शहीदों की स्मृति में यहां ललिता-पन्ना शहीद स्मारक बनाया गया था।


सहारनपुर में बंटा था खूनी पर्चा

- बताते हैं कि देश को आजाद करने के लिए क्रांतिकारी और सेनानी जुटे हुए थे।

- मार्च 1928 में गणेश शंकर विद्यार्थी के आग्रह पर एक खूनी पर्चे की रचना हुई थी।

- पोस्टर के रूप में यह पर्चा सहारनपुर, मेरठ और दिल्ली समेत देशभर के क्रांति केंद्रों में बांटा गया।

- ब्रिटिश सेना के काफी प्रयासों के बावजूद इस पर्चे को लिखने वाले का पता नहीं लगाया जा सका था।

- सहारनपुर में आजादी की लड़ाई के दौरान बाबा लालदास रोड स्थित फुलवारी आश्रम शहीद ए आजम भगत सिंह की अमर गाथा का साक्षी बना।

- कहा जाता है कि चकराता रोड स्थित तत्कालीन सेवादल मैदान में क्रांतिकारी खेलकूद आधारित गतिविधियों के दौरान आजादी के दीवानों की फौज तैयार करते थे।

- फुलवारी आश्रम में शहीद ए आजम भगत सिंह दो रात रुके थे।

आगे की स्‍लाइड्स में देखिए उस पेड़ की फोटोज, जिस पर क्रांतिकारियों को दी गई फांसी...